Saturday, December 26, 2009

शब्द ब्रह्म है शब्द राक्षस है

शब्द अनंत शक्तिमान होते है यदि शब्द कूटनीति के है, साम दाम दण्ड भेद से प्रेरित है तो इतिहास गवाह है उसने तीर तलवारो की झंकार से लेकर परमाणु बमो की टंकार सुनी है मनुष्य तथा मनुष्यता का खून बहते देखा है अहंकार से उत्पन्न साम दाम दण्ड भेद की कूटनीति मानवता के लिए दींमक का कार्य करती है यह जिस मानव धर्म तथा प्रकृति के वृक्ष पर बैठती है उसे ही खाती रहती है अज्ञानियो तथा दुर्बुद्धियो के शब्द मानव समाज तथा पर्यावरण में अनेक दरारे डालते हुए पतन के अनन्त मार्ग खोल देते हैशब्द से गाली भी बनती है शब्द से प्यार भी छ्लकता है शब्द से संवाद भी होता है विवाद भी। शब्दो से किसी का अनादर करने,किसी को पराजित करने ,स्वयं के संचित ज्ञान की श्रेष्ठता अन्य पर साबित करने,अपनी जाति,प्रजाति,धर्म्,संस्कृति,देश की श्रेष्ठता अन्य पर साबित करने के प्रयास शब्दो को राक्षस बना देते है और मानव समाज तथा पर्यावरण में छुपी अनन्त ऊर्जा को नष्ट करते हुए उसके सदुपयोग की संभावनाओ को क्षीणतम कर देते है।यदि शब्द परम ज्ञानियो के है तो वे मानव समाज तथा पर्यावरण को झंकृत करते है जीव तथा प्रकृति वहां नृत्य मुद्रा में ,आनंद मुद्रा में ,कर्मशील हो उठते है। जब लगन्[भक्ति] तथा समझ्[ज्ञान] के साथ सत्य की खोज के लिए संवाद होता है तो सत्य के अनेको अबूझे रहस्य प्रकट होने लगते है मानवता की पीडा दूर करने का भाव जब शब्दो की आत्मा बन जाते है तो वे ब्रह्म स्वरूप हो जाते है तथा ईसा, बुद्ध्,महावीर्,नानक कबीर, गांधी जैसे कर्मयोगियो के उद्वविकास का मार्ग प्रशस्त करते है।ब्रह्म स्वरूप हुए शब्द मानव समाज तथा पर्यावरण में अंतर्निहित अनंत ऊर्जा को सर्वार्थ के लिए उपयोग करने के अनन्त मार्ग खोल देते है
अत: साधको शब्दों को ब्रह्म बनाओ शब्दों को राक्षस न बनने देने के अहिंसक उपायों को खोजो।

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